June 9, 2025

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नंबाला केशवराव उर्फ बसवराज: नक्सल क्रांति का रणनादक और अबुझमाड़ का रक्तरंजित अंत

नंबाला केशवराव उर्फ बसवराज: नक्सल क्रांति का रणनादक और अबुझमाड़ का रक्तरंजित अंत

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई, माओवादी नेता बसवराज ढेर

21 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबुझमाड़ जंगल में सुरक्षा बलों ने “ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट” के तहत नक्सलियों के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया। इस मुठभेड़ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के शीर्ष नेता नंबाला केशवराव उर्फ बसवराज समेत 27 नक्सली मारे गए। यह मुठभेड़ नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों की अब तक की सबसे बड़ी सफलता मानी जा रही है। बसवराज, जो माओवादी संगठन का महासचिव था, नक्सल आंदोलन का रणनीतिक मास्टरमाइंड और केंद्रीय नेतृत्व का आधारस्तंभ था। उसकी मृत्यु ने माओवादी आंदोलन को गहरा झटका दिया है।

बसवराज का सफर: इंजीनियर से नक्सल नेता तक
आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के पलाकोंडा गांव में 1955 में जन्मे नंबाला केशवराव ने सिविल इंजीनियरिंग में शिक्षा प्राप्त की थी और एक समय इंजीनियर के रूप में काम किया। 1970 के दशक में नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रेरित होकर वे माओवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हुए। 1980 के दशक में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) में शामिल हुए और अपनी रणनीतिक कुशलता के दम पर तेजी से संगठन के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचे। 2018 में उन्होंने संगठन के महासचिव का पद संभाला।

नक्सल आंदोलन में भूमिका
बसवराज ने मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों, विशेष रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र में नक्सल गतिविधियों को बढ़ावा दिया। उनकी रणनीति में गुरिल्ला युद्ध, बारूदी सुरंग विस्फोट और स्थानीय आदिवासी समुदायों का समर्थन हासिल करना शामिल था। उनके नेतृत्व में हुए कई बड़े हमलों में 2010 का दंतेवाड़ा हमला सबसे कुख्यात है, जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे। उनके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था, और वे सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ा खतरा माने जाते थे।

अबुझमाड़ में अंतिम मुठभेड़
अबुझमाड़ के घने जंगलों में सीआरपीएफ, छत्तीसगढ़ पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों ने संयुक्त रूप से ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट चलाया। इस कार्रवाई में बसवराज और उनके कई सहयोगी मारे गए। यह मुठभेड़ नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई है।

नक्सल आंदोलन पर प्रभाव
बसवराज की मृत्यु से माओवादी संगठन में नेतृत्व का शून्य पैदा हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे नक्सलियों का मनोबल टूट सकता है और संगठन में आंतरिक अस्थिरता बढ़ सकती है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के समाधान के अभाव में नक्सलवादी विचारधारा को समर्थन मिलने की आशंका बनी रहेगी।

आगे की राह
बसवराज की मृत्यु ने नक्सलवाद के खिलाफ भारत सरकार की लड़ाई को नई ताकत दी है। सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ा है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या यह नक्सल आंदोलन का अंत होगा या यह नए नेतृत्व के साथ फिर से उभरेगा। फिलहाल, यह कार्रवाई नक्सलवाद के खिलाफ एक निर्णायक जीत के रूप में देखी जा रही है।

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