गढ़चिरौली में 3.96 करोड़ के धान घोटाले में क्षेत्रीय प्रबंधक का अग्रिम जमानत आवेदन खारिज

गढ़चिरौली, 29 मई 2025: गढ़चिरौली सत्र न्यायालय ने मुरलीधर शंकर बावणे का अग्रिम जमानत आवेदन (Cri. Bail Appln. No. 67/2025) 27 मई 2025 को खारिज कर दिया। बावणे, जो महाराष्ट्र राज्य सहकारी आदिवासी विकास महामंडल (MSCTDC) के क्षेत्रीय प्रबंधक हैं, पर देऊलगांव धान खरीद केंद्र में 2023-24 और 2024-25 के दौरान 3.96 करोड़ रुपये के धान और बोरो के गबन का आरोप है। कुर्खेड़ा पुलिस स्टेशन में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 316(5), 318(4) और 3(5) के तहत अपराध क्रमांक 69/2025 दर्ज किया गया है। न्यायाधीश श्री प्रशांत आर. सित्रे ने अपराध की गंभीरता और बावणे की प्रत्यक्ष संलिप्तता के प्रथम दृष्टया सबूतों के आधार पर यह निर्णय दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
हिम्मतराव सुभाष सोनवणे, उप-क्षेत्रीय प्रबंधक, MSCTDC, अरमोरी ने 18 अप्रैल 2025 को शिकायत दर्ज की। गढ़चिरौली के क्षेत्रीय प्रबंधक ने 19 मार्च 2025 को देऊलगांव केंद्र का दौरा किया, जहां बावणे और अन्य ने 2023-24 में 3,944.08 क्विंटल धान (1.45 करोड़ रुपये) और बोरों की कमी के कारण 1.53 करोड़ रुपये, तथा 2024-25 में 6,140 क्विंटल धान (2.36 करोड़ रुपये) और बोरों की कमी के कारण 2.42 करोड़ रुपये, कुल मिलाकर 3.96 करोड़ रुपये के गबन का खुलासा हुआ। अभियोजन का आरोप है कि बावणे ने मिलर्स को फर्जी डिलीवरी ऑर्डर (D.O.) पत्र जारी किए और मुख्य कार्यालय से जानकारी छिपाई।
आवेदक का तर्क
बावणे के वकील, श्री जी.पी. मेश्राम ने तर्क दिया कि बावणे निर्दोष हैं और उन्हें झूठा फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि पूर्व क्षेत्रीय प्रबंधक के निर्देश पर बावणे को निशाना बनाया गया। देऊलगांव की आदिवासी विविध कार्यकारी सहकारी संस्था का स्वतंत्र प्रबंधन है, और MSCTDC के साथ समझौता 8 फरवरी 2024 से लागू हुआ। 1 दिसंबर 2024 को MSCTDC और केंद्र सरकार के अधिकारियों की जांच में कोई अनियमितता नहीं मिली। 11 दिसंबर 2024 को समिति ने पंचनामा किया, जिसमें स्टॉक में कोई कमी नहीं पाई गई। नुकसान के लिए चूहे, फटे बोरे और लोडिंग के दौरान बिखराव जैसे बाहरी कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। बावणे का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, और वे न्यायालय की शर्तें मानने को तैयार हैं।
अभियोजन का विरोध
सहायक सरकारी वकील (APP) श्री एन.एम. भांडेकर ने तर्क दिया कि बावणे केंद्र के कार्यों पर नियंत्रण रखते थे और अन्य आरोपियों की मदद की। खातों में धन का प्रवाह और FIR में विशिष्ट आरोप उनकी संलिप्तता के सबूत हैं। उनके वरिष्ठ पद के कारण, गवाहों को धमकी देने की आशंका है।
न्यायालय का फैसला
न्यायालय ने FIR, फर्जी दस्तावेजों और योजनाबद्ध साजिश के सबूतों के आधार पर अर्जी खारिज की। जांच जारी है, और यह मामला सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित करता है।